संस्कृत भाषा जो कि देववाणी , सुरवाणी , आदि नामो से भी जानी जाती हैं। संस्कृत भाषा का इतिहास प्रायः 3000 वर्षो का माना जाता हैं। किन्तु यह भाषा इससे भी प्राचीन हैं। वैदिक संस्कृत के अंतर्गत जो वेदो की ऋचाएं हैं वह तो अर्थो रूपेय हैं। इन ऋचाओं का हमारे ऋषियों ने साक्षात्कार किया हैं। लिखा नहीं गया हैं इन ऋचाओं को। अतः संस्कृत भाषा का इतिहास काल से भी परे हैं।
संस्कृत भाषा जो इतिहास से भी प्राचीन हैं। उसकी स्थिति वर्तमान में संतोषजनक नहीं हैं। पाठशालाओं व गुरूकुलों में संस्कृत के छात्र व शिक्षक दोनो का पर्याप्त अभाव हैं। इन शिक्षालयों के भवन भी जर्जर स्थिति में हैं। जिसके लिए सरकार और समाज दोनो उत्तरदायी हैं। विश्वविद्यालयों में भी संस्कृत के छात्र प्रायः कम ही होते हैं। जो छात्र संस्कृत का अध्ययन करते हैं। वे प्रायः निम्न पारिवारिक पृष्ठ भूमि के होते हैं। क्योंकि अन्य विषयो की अपेक्षा संस्कृत का अध्ययन करना अपेक्षाकृत कम खर्च वाला हैं। सम्भ्रान्त वर्ग प्रायः संस्कृत का अध्ययन करने से बचला हैं। इसका कारण यह हैं कि आज का युग व्यावसायिक युग हैं और प्रायः लोगो का यह भ्रम है कि संस्कृत भाषा का अध्ययन वृत्तिपरक रही हैं।
किन्तु ऐसा नहीं हैं कि संस्कृत भाषा का क्षेत्र रोजगार की अपार संभावनाओं के लिए हुए हैं। संस्कृत केवल एक भाषा नहीं हैं। संस्कृत भारत की ज्ञान परम्परा हैं। संस्कृत में भारत वर्ष का हजारों लाखो वर्षों का ज्ञान समाहित हैं। यदि हमें भारत की इस ज्ञान परम्परा का लाभ उठाना हैं तो हमें संस्कृत भाषा को पढ़ना होगा। संस्कृत भाषा का व्याकरण, साहित्य, दर्शन सब प्रौढ़ व समृद्ध हैं।
संस्कृत का पाणिनीय व्याकरण विश्व का प्रथम कृत्रिम बुद्धिमत्ता वाला ग्रन्थ हैं। महर्षि पाणिनी ने 14 शिव सूत्रों को लेकर 42-43 प्रत्याहारो की प्रोग्रामिंग की और इन प्रत्याहारो को सम्पूर्ण भाषा के व्याकरण में बांध दिया। इसी कारण से संस्कृत भाषा को कम्प्यूटर के लिए सर्वाधिक उपयोगी भाषा माना गया। संस्कृत भाषा का साहित्य वर्तमान समाज के लिए अत्यंत आवश्यक हैं। क्योंकि इनके एकत्व भावना का संचार, सबका कल्याण व नैतिकता का भाव हैं। वेदो संगच्द्यध्वं संवदध्वं की बात कही गई व सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया की चर्चा हैं। गीता के द्वितीय अध्याय में कर्म करने की महत्ता पर बल दिया गया। कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। भर्तृहरि का नीतिशतक लौकिक शिक्षा में महत्वपूर्ण स्थान रखता हैं। मनुस्मृति, याज्ञवल्क्य स्मृति, लोकाचार के लिए आवश्यक धर्म ग्रंथ हैं। स्वस्थ जीवन व्रत के लिए चरक संहिता , सुश्रुत संहिता व अष्टांग ह्दयम् ग्रन्थ अति उपयोगी हैं। जो कि संस्कृत में ही हैं। मानसिक सुख व आध्यात्मिक विकास के लिए संस्कृत के दार्शनिक ग्रन्थों का अध्ययन आवश्यक हैं।
अतः उत्तम नागरिक के निर्माण के लिए, एक श्रेष्ठ चरित्र के निर्माण के लिए ,भारत की आध्यात्मिक चेतना के पुनरूत्थान के लिए ,अच्छी वृत्ति के लिए, सामाजिक संरचना व्यवस्था में सुव्यवस्था लाने के लिए, भारतीय संस्कृति के पुनरूत्थान के लिए संस्कृत का अध्ययन, अध्यापन आवश्यक हैं।
कहा भी गया हैं कि ( भारते प्रतिष्ठे द्वे संस्कृतं संस्कृतिक्तथा )। संस्कृत भाषा के लिए महाभारत की यह सूक्ति भी चरितार्थ होती हैं कि- यदिहास्ति तदन्यत्र यन्नेहस्ति न तत् कवचित्।
गुलशन कुमार
परास्नातक द्वितीय वर्ष JNU
SCHOOL OF SANSKRIT AND INDIC STUDIES
Published By Siddharth Srivastava
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