भारतीय संस्कृति में पितर पक्ष का बड़ा महत्व है । इन दिनों में हमारे पितर /पूर्वज जैसे पिता, बाबा, परबाबा, माता, दादी, परदादी नाना, नानी एवं अन्य पितर आदि हमारे घरों में आते हैं और 15 दिनों तक हमारे घरों में रहते हैं । हमारे पितर पधार रहे हैं तो हमें क्या करना चाहिए ? हमारे ऋषियों ने एक व्यवस्था बनाई, जिसमें हमें 15 दिनों तक तर्पण पिंडदान एवं अन्य अनुष्ठान परक साधनाओं के द्वारा एक विशेष आध्यात्मिक ऊर्जा तैयार करनी है, और अपने पितरों को देनी है । जिससे अपने पितृ ऋण का कुछ अंश अदा हो सके । जिस प्रकार हमारा बेटा,बेटी, प्रिय जब दूसरे शहर/विदेश से घर आने को होते हैं तो घर वाले दिन गिनते हैं, अभी 3 दिन बाकी हैं अब 2 दिन बाकी हैं वगैरह वगैरह । आज उसे आना है, क्या बनाया जाए, आदि आदि । नाना प्रकार के व्यंजन बनाने का प्रयास किया जाता है क्योंकि आज मेरा लाड़ला/लाडली/ प्रिय घर आ रहा है ।
उसी प्रकार हमारे पितर देव जैसे पिता जी बाबा, परबाबा, माता, दादी, परदादी, नाना -नानी आदि पितरों के अंदर भी पितर पक्ष आने के पूर्व ही एक खुशी की लहर होती है कि हमारी भावी पीढ़ी हमें बुलाएगी, और हम जरूर जाएंगे । लेकिन आने वाला तो तैयार खड़ा है, लेकिन बुलाने वाला कोई नहीं है । ऐसे में हमारे पितरों को बड़ा कष्ट होता है और कभी-कभी यह कष्ट आक्रोश में भी बदल जाता है
पितरों के सम्मान के पीछे एक उद्देश्य यह भी होता है कि अज्ञानता वश हमने/हमारे परिवार/हमारे पूर्वजों ने अपने पितरों/पूर्वजों की सेवा नहीं की थी या किसी प्रकार से उनको कष्ट पहुंचाया था । जिसे अब हम महसूस कर रहे हैं कि जो बोया था, उसे काटना भी पड़ेगा तो उसका भी ऐसे अवसर पर प्रायश्चित कर क्षमा मांगने का समय होता है ।इसीलिए हमारे ऋषियों ने पितर पक्ष में अपने पितरों को आमंत्रित कर जलांजलि/तर्पण/पिंडदान आदि करने की व्यवस्था अनिवार्य रूप से सभी के लिए बनाई थी ।संयुक्त परिवार होने के कारण एक व्यक्ति को पूजा-पाठ तर्पण आदि के लिए नियुक्त कर के बाकी सदस्यों को प्रतिदिन चित्र के पास बैठकर ध्यान एवं प्रणाम करने का विधान है । गांव में आंगन में एक कोने को प्रतिदिन गोबर से लीप कर, पितरों को माला फूल चढ़ाकर 15 दिनों तक उनका आज भी अधिकांश जगह सम्मान किया जाता है । शहरों में स्थान की कमी आदि को देखते हुए पूजा स्थल से थोड़ा हटकर एक चौकी/ छोटी मेज पर अपने पितरों का चित्र लगाकर पूजा का विधान है । स्त्री पितर को पहले यानी मातृ नवमी को विदा कर दिया जाता है । और पुरुष सितारों को अमावस के दिन विदा किया जाता है ।
पितरों के सम्मान में कहीं कोई कमी ना आने पाए इसके लिए सार्वजनिक अवकाश की भांति ऋषियों ने अन्य मांगलिक कार्य न करने के लिए जोर दिया था । इस अवधि में यदि माता-पिता दादा-दादी आदि के स्वर्गवास की तिथि याद हो तो उस दिन तर्पण, पिंडदान, ध्यान, प्रणाम के साथ घर में अच्छा भोजन बनाकर सुपात्र को भोजन कराने का विधान है । इन 15 दिनों में हमारे द्वारा किए गए दान आदि हमारे पितरों को मिलते है । भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि पितरों के नाम से सुपात्र को दिया गया दान, मैं स्वयं लेकर उस पितर तक पहुंचाता हूं । इसलिए इन दिनों में यथाशक्ति भोजन, वस्त्र, धन आदि दान करने का विधान है । दान सुपात्र को ही मिले इसका प्रयास भी करना पड़ता है ।क्योंकि यदि यही दान कुपात्र को मिल गया तो दान पाप की श्रेणी में भी आ सकता है ।शास्त्रों का मत है कि
*कर्तुश्च, सारथे हेतुर, अनुमोदि, तू रेव च, कर्मणा भागिन: प्रत्याभूयो भूयसि तत्फ़लम ।*
*अर्थात कार्य को करने वाला, सहयोगी और समर्थन करने वाले तीनों ही उस अच्छे बुरे कार्य के भागीदार हैं ।इसलिए देने से पहले भली-भांति सुपात्र को खोजना और उसे दान देने का विधान है । यदि हमारे दिए गए दान के रुपये से कुपात्र नशा आदि में अपव्यय करता है तो उसके भागीदार हम भी होंगे, ऐसा शास्त्रों का मत है ।*
तर्पण से तृप्ति और श्रद्धा से किया गया प्रत्येक कार्य श्राद्ध कहा जाता है । जब हमारे पितर हमारी श्रद्धा से तृप्त होकर विदा होते हैं तो आवश्यकता पड़ने पर अनेकों बार भिन्न भिन्न प्रकार से अप्रत्यक्ष हमें सहयोग/सहायता/ रक्षा /मार्गदर्शन आदि करते हैं । अखिल विश्व गायत्री परिवार के संस्थापक परम पूज्य गुरुदेव *आचार्य पंडित श्री राम शर्मा द्वारा लिखित पुस्तक “पितृ हमारे अदृश्य सहायक”*, जिसमें उन्होंने अपने देश एवं विदेश के अनेक लोगों को उनके पुत्रों द्वारा सहायता का वर्णन/चित्रण किया है, उसको पढ़ कर अन्य देश एवं धर्म के लोग भी अब पितरों पर विश्वास करके हमारे देश में तर्पण पिंडदान करने और मार्गदर्शन वास्ते आते हैं और अज्ञानता वश अपने पूर्वजों के साथ किए गए अश्रद्धा, अपमान असम्मान आदि का प्रायश्चित कर उनसे क्षमा याचना करते हैं ।
*पितृ पक्ष की मूढ़ मान्यता/ भ्रांतियां*
हमारे समाज में एक दुष्प्रचार यह भी फैला है कि पितृपक्ष के 15 दिन खराब दिन या गरु दिन होते हैं और इन दिनों में कोई भी शुभ काम नहीं करना चाहिए ।यहां तक कि लोग दाढ़ी, बाल आदि कटवाने पर भी प्रतिबंध लगा मानते हैं ।हमारे ऋषियों का पितृपक्ष में 15 दिन के लिए मांगलिक कार्यों में रोक लगाने के पीछे उद्देश्य था यदि हम इन दिनों में अन्य मांगलिक कार्यों में उलझ जाएंगे तो अपने पितरों का स्वागत एवं उनके लिए विशेष आध्यात्मिक ऊर्जा कैसे बना पाएंगे ।जिस प्रकार हमारे घर में हमारा दामाद आता है तो पिताजी ऑफिस नहीं जाते हैं, खेतों में काम नहीं होता है, बच्चे स्कूल नहीं जाते हैं, गैरजरूरी कार्य स्थगित कर दिए जाते हैं, आदि-आदि, क्यों ? क्योंकि आज हमारे दामाद/ जीजाजी घर आ रहे हैं ।इसी प्रकार पितर पक्ष में हमारे पितर/पूर्वज हमारे घरों में आ रहे हैं, उनकी विशेष व्यवस्था वास्ते अन्य मांगलिक कार्यों को रोका गया था । अज्ञानतावस पितृ पक्ष को खराब दिन/गरु दिन की संज्ञा देकर इन शुभ दिनों को अशुभ मान लिया गया ।जबकि हमारे घर पूर्वज का आना अशुभ कैसे हो सकता है ? हम शादी-ब्याह ब्याह यज्ञोपवीत आदि में मी मैत्री पूजा के माध्यम से सर्वप्रथम पितरों को आमंत्रित करते हैं ।इन दिनों में दाढ़ी बाल आदि न बनवाने के पीछे पूर्वजों के प्रति श्रद्धा प्रकट करना होता था ।
पूर्व व्यवस्था के अनुसार संयुक्त परिवार हुआ करते थे ।बाबा के साथ में नाती, पोतों तक का परिवार रहता था । कहते हैं कि जो महिला खाना बनाने रसोई में प्रवेश करती थी, उसको शाम हो जाती थी ।संयुक्त परिवार में हर आदमी को अलग-अलग जिम्मेदारी दी जाती थी इसी क्रम में एक व्यक्ति को परिवार में किसी की मृत्यु होने पर उसका क्रिया -कर्म, पितृपक्ष में श्राद्ध आदि की जिम्मेदारी दी जाती थी । आज संयुक्त परिवार नहीं रह गए हैं और पूर्व मान्यता के अंतर्गत लोग कहते हैं/तर्क देते हैं कि इन दिनों हमारे यहां गांव में पानी दिया जाता है/अरे हम तो छोटे हैं वह बड़े हैं, आदि कहकर बात टाल देते हैं ।जबकि इन बिखरे परिवार में भी एक व्यक्ति के द्वारा पूजन क्रम बाकी सभी के द्वारा प्रणाम व्यवस्था होनी चाहिए । जिस प्रकार दूसरे के द्वारा किए गए भोजन से हमारा पेट नहीं भरेगा उसी प्रकार पितरों की कृपा उसी को मिलेगी जो उनके लिए कुछ करेगा ।इसलिए सभी को इन दिनों पितरों के ध्यान,प्रणाम आदि की व्यवस्था करनी चाहिए । गया में श्राद्ध करने के पीछे यह मान्यता है कि हमारे पितरों को जन्म मरण से मुक्ति मिल गई है या उनकी आत्मा तृप्त होकर देवलोक को चली गई, अतः उनका श्राद्ध अब नहीं करना है । गया भोज कर चुके लोग/परिवार भी इन दिनों में अपने पितरों को ध्यान, प्रणाम और याद तो कर ही सकते हैं ।वर्तमान पीढ़ी अपने पितरों का यह सम्मान देखकर सीख लेती है कि हमें भी घर में अपने पूर्वज बाबा परबाबा, दादी आदि का चित्र लगाकर उनको सम्मान देना चाहिए । अन्यथा आने वाले दिनों में लोग माता-पिता को भी भूल जायेंगे ।आज बढ़ते वृद्ध आश्रम इन्हीं सब का दुष्परिणाम है ।
*क्या है पितृ ऋण/ दोष*
हमारे शास्त्रों का मत है कि हमारे ऊपर नाना प्रकार के ऋण जैसे देव ऋण, माता पिता का ऋण, गुरु का ऋण, जन्मभूमि का ऋण आदि होता है ।उसी प्रकार एक पितृ ऋण भी हमारे ऊपर होता है । जिनका नाम हम बड़े गर्व से लेते हैं कि हमारा अमुक गोत्र है अर्थात हम अमुक ऋषि की संतान हैं ।अब यदि अमुक ऋषि से अब तक की गिनती करें तो हमारे कितने पूर्वज हो जाएंगे ।आज अगर हम हैं/हमारा आस्तित्व है तो उसका श्रेय हमारे माता-पिता, पूर्वजों /पितरों को ही जाता है ।हमें इस संसार में लाने भरण पोषण करने वालों का कर्ज हम जीवन भर नहीं उतार सकते, ऐसी मान्यता हमारे ऋषियों की है । पूर्वजों के इस ऋण को कम करने का प्रयास नहीं किया तो यह ब्याज दर ब्याज बढ़ता ही रहता है और विभिन्न प्रकार की आपदाओं /बीमारियों /अशांति/असफलता आदि के रूप में प्रकट होता है । पितर इन्हीं सब के माध्यम से अपना रोष प्रकट करते हैं । कभी-कभी आकस्मिक दुर्घटनाओं के द्वारा भी पितर अपना रोष प्रकट कर परिवार में दुख का वातावरण उत्पन्न कर देते हैं । इसलिए शास्त्रों में पितृदोष को बढ़ा घातक माना जाता है ।
*पित्र दोष को कैसे कम करें*
शास्त्रों में लिखा है *धर्माय, कीर्ति, अर्थाय, आत्मने, स्वजनाय च* अर्थात अपनी आय का एक हिस्सा हमें अपने पितरो हेतु खर्च करना चाहिए, जिससे हम अपने पितरों के ऋण/ कर्ज को कुछ कम कर सके । इसलिए पितरों की तृप्ति/ संतुष्टि हेतु तर्पण, पिंडदान, ध्यान, प्रणाम आदि की विशेष व्यवस्था पितृ पक्ष में हमारे ऋषियों ने बनाई थी । जिसके करने से पितृ ऋण और पितृ दोष कम हो सके। इसके लिए इन दिनों हर घर में पितरों के लिए विशेष स्थान बना कर उनको स्थापित करने, प्रणाम करने आदि की व्यवस्था करनी चाहिये । इसके माध्यम से पितरों को तृप्त/संतुष्ट किया जा सकता है ऐसा ऋषियों का मत है । जिस प्रकार यदि एक बेटा घर से दूर नौकरी या व्यापार कर रहा होता है और अपने माता पिता को पैसा नहीं भेजता है तो माता-पिता नाराज होते हैं लोगों से कहते हैं कि मेरा बेटा इतना कमाता है, अपना मौज करता है लेकिन हमें कभी पूछता तक नहीं है । अबकी बार घर आया तो भगा देंगे, घर मे घुसने नहीं देंगे । लेकिन वही बेटा जब घर आता डीसी है माता पिता के पैर छू लेता है तो सारी शिकायतें दूर हो जाती हैं /नाराजगी दूर हो जाती है । इसी प्रकार हमारे पितर केवल प्रणाम ध्यान, तर्पण, भोजन, दान आदि के माध्यम से खुश हो जाते हैं और अवसर पड़ने पर नाना प्रकार से अदृश्य/ अप्रत्यक्ष रुप से सहयोग, रक्षा आदि करते रहते हैं ।अतः हम अपने घर में पूजा स्थल से कुछ हटकर एक चौकी /छोटी मेज पर अपने पितरों के चित्र लगाएं । पितृ पक्ष में प्रतिदिन देव पूजन के बाद अपने पितरों को तिलक, माला -फूल चढ़ाएं ।तर्पण कर सके तो अति उत्तम अन्यथा चित्र के पास तिलों के ढेर पर एक सरसों के तेल का दीपक जलाएं । अब अपने नेत्र बंद कर प्रणाम मुद्रा में यथा संभव अपने पितर जैसे बाबा दादी आदि जो भी याद आ सके उनको बारी-बारी से प्रणाम एवं अपनी गलती /भूलों के लिए क्षमा मांगे । अंत में भूले बिसरे पितरों को याद करें, प्रणाम करें । 15 दिन तक घर के सभी सदस्य देवताओं को और अपने घर में आवाहित पितृ देवो को प्रणाम करें ।शाम को अंधेरा होते समय एक सरसों के तेल का दीपक पितरों के समक्ष और एक दीपक दरवाजे के बाहर एक कोने में रख कर जलाएं ।भाव यही रहे कि पितरों के आने के लिए मार्ग प्रकाश की व्यवस्था कर रहे हैं ।नवमी और अमावस्या को पितरों के निमित्त पिंडदान भी करें ।
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