महात्मा गौतम बुद्ध की जयंती मनाई गई l
जन अधिकार पार्टी के जिलाध्यक्ष आर डी फौजी ने एवं सभी साथियों ने लॉकडाउन का पालन करते हुए बुद्ध पूर्णमा के अवसर पर पूरे जिले में सभी पदाधिकारियों और शुभ चिंतकों ने भगवान बुद्ध की जयंती मनाई और उनके बताए रास्ते पर चलने का संकल्प लिया l
इस अवसर पर किसानों द्वारा किया जा रहा धरना प्रदर्शन को आज 6 महीना होने जा रहे है उनके समर्थन में बताया कि जन अधिकार पार्टी का किसानों को पूरा समर्थन रहेगा और पूरे प्रदेश में सरकार की कुंभकर्णी नींद से जगाने के लिए सभी लोग अपने अपने घरों पर काले झंडे लहराएंगे एवम् हाथों में काली पट्टी बांध कर शांत पूर्वक धरना प्रदर्शन जब तक जारी रहेगा तब तक सरकार किसान विरोधी तीनो काले कानून वापस नही ले लेती हैl
महात्मा बुद्ध के जीवन परिचय पर विस्तार से बताया और बताया कि भारत को कैसे सोने की चिड़िया कहा जाता था और भारत कैसे विश्व गुरु बना l
आज से 2584 वर्ष पहले, 563 ई.पू. वैसाख मास की पूर्णिमा को रुम्मिनदेई (लुम्बिनी वन), नेपाल में गौतम (सिध्दार्थ) का जन्म हुआ था। गौतम (सिध्दार्थ) बचपन से ही दयालु तथा विनम्र प्रवृत्ति के थे। उनके पिता शुध्दोधन, साक्य गणराज्य के महाराजा थे। इस गणराज्य की राजधानी कपिलवस्तु थी जो आज नेपाल में स्थित माना जाता है । उस समय भारत में 11 गणराज्य थे। इन गणराज्यों में जनता द्वारा चुने हुए प्रतिनिध, राजा का चुनाव करते थे। 20 वर्ष की अवस्था में वोट देने का अधिकार होता था। संथागार (संसद भवन) में प्रस्तावों पर हेतु बैठक हुआ करती थी। चुने हुए प्रतिनिधियों द्वारा, विचार विमर्श करे निर्णय लेकर नीति बनाई जाती थी। प्रतिनिधियों के निर्णय को मानने के लिए, राजा तथा उनके सम्बंधी भी बाध्य होते थे। गौतम की माँ महारानी रुम्मिनदेई (महामाया) थी। उनकी पत्नि का नाम कच्चाना / गोपा (यसोधरा) तथा पुत्र का नाम राहुल था। राहुल के जन्म के समय रोहिणी नदी के जल के बटवारे को लेकर साक्य गणराज्य व कोलिय गणराज्य में विवाद इतना गहरा हो गया कि साक्य परिषद ने कोलिय गणराज्य पर आक्रमण का प्रस्ताव पारित कर दिया। साक्य परिषद के इस प्रस्ताव का गौतम ने विरोध किया। साक्य परिषद के नियमानुसार, सर्वसम्मति से पारित प्रस्ताव का विरोध करने वाले को इन तीन में से एक दंड स्वीकार करना पड़ता था।
1. सम्पत्ति की नीलामी
2. देश निस्कासन
3.मृत्युदण्ड
गौतम ने देश निस्कासन को स्वीकार किया। इस प्रकार के आपसी कलह व जीवों के दुखों के कारणों का पता लगाने के लिए उन्होंने ग्रह त्याग किया। उस समय के विभिन्न गुरुओं द्वारा सुझाए गये, कठोर तप के बावजूद भी, ज्ञान प्राप्त नहीं हुआ। उसके बाद स्वयं ही, मध्यम मार्ग अपनाते हुए, विपस्सना के माध्यम से 35 वर्ष की आयु में, आज से 2549 वर्ष पहले, 528 ई०पू० वैसाख मास की पूर्णिमा को संबोधि प्राप्त किए। और ये तथागत गौतम बुध के नाम से प्रसिद्ध हुए।
उसके बाद वे उस समय की भेदभाव वाली धार्मिक परम्पराओं को पूरी तरह से ध्वस्त करते हुए, सभी वर्णो जैसे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र यहा तक कि अछूतों, महिलाओं व वेश्याओं को भी धम्म का लाभ दिये, फलस्वरूप सभी प्रकार के लोग, दुखों से मुक्त होकर अर्हत होने लगे। इससे यह स्थापित कर दिये कि उस समय जितने भी भेदभाव पूर्ण नियम धर्म की रक्षा के नाम पर चल रहे थे, वे धर्म की रक्षा के लिए नही थे। तथागत द्वारा स्थापित इस स्वतंत्रता का परिणाम हुआ, कि समाज व देश चहुमुखी वैज्ञानिक, शैक्षणिक, कलात्मक, औद्योगिक व आर्थिक विकास के मार्ग पर दौड पडा। इसके परिणामस्वरूप भारत सोने की चिड़िया तथा विश्वगुरु बन सका। भगवान बुध 45 वर्षों तक, पूरे देश में, पैदल चल कर, अपने ज्ञान को वितरित करते हुए, प्राणी मात्र ही नही वरन् सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के कल्याण तथा प्रकृति के पर्यावरण संरक्षण हेतु पूरा जीवन लगा दिये। उनकी शिक्षाओं की बदौलत ही भारत की बोली जाने वाली सर्वप्राचीन भाषा पालि भाषा तथा पढ़ी जाने वाली सर्वप्राचीन लिपी धम्म लिपी के कारण भारत की विश्व में साख स्थापित है। आज से 2504 वर्ष पहले 483 ई०पू० बैसाख मास की पूर्णिमा को शरीर त्याग कर महापरिनिब्बान को प्राप्त किए।
विश्व को सर्वप्रथम सभ्यता का पाठ पढाने वाले, समता समानता के संस्थापक, प्रकृति धम्म के अन्वेषक, मानवता के सम्वाहक, महान दार्शनिक, महान वैज्ञानिक, महान चिकित्सक, महान पर्यावरणविद, महान तर्कशास्त्री, महान समाजशास्त्री, महान अर्थशास्त्री, संसार के सौ महापुरुषों में प्रथम स्थान रखने वाले, अपने ज्ञान के आलोक से पूरे विश्व को आलोकित ‘भारत’ शब्द के शब्दार्थ को चरितार्थ करने वाले, महाकारुणिक भारत को विश्वगुरु का दर्जा दिलाने वाले, महामानव, साक्यमुनि तथागत गौतम बुध को उनके 2584 वें जन्म दिवस वैसाख पूर्णिमा के पावन पर्व पर शत् शत् नमन। भगवान बुध के इस त्रिविध पावनी पर्व, बुध पूर्णिमा को आज के इस महामारी के दौरान अपने-अपने में रहकर ही मनाए।
प्रातः उठकर दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर, भगवान की प्रतिमा के समक्ष पंचसील दीप जलाएं, बुध
नमन, त्रिसरण, पंचसील ग्रहण करें, विपस्सना करें व उपोसथ व्रत का पालन करें।