अखिल भारतीय यदुवंशी महासभा रामपुर उत्तर प्रदेश भारत के युवा जिलाध्यक्ष गोविन्द सिंह यादव मोनू ने कहा कि आज काकोरी काण्ड की बरसी है ,भारत के स्वाधीनता आंदोलन में काकोरी कांड की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही है. लेकिन इसके बारे में बहुत ज्यादा जिक्र सुनने को नहीं मिलता. इसकी वजह यह है कि इतिहासकारों ने काकोरी कांड को बहुत ज्यादा अहमियत नहीं दी. लेकिन यह कहना गलत नहीं होगा कि काकोरी कांड ही वह घटना थी जिसके बाद देश में क्रांतिकारियों के प्रति लोगों का नजरिया बदलने लगा था और वे पहले से ज्यादा लोकप्रिय होने लगे थे। गोविन्द ने बताया कि
भारत के स्वतंत्रता आंदोलन पर 1857 की क्रांति के बाद उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्ध में चापेकर बंधुओं द्वारा आर्यस्ट व रैंड की हत्या के साथ सैन्यवादी राष्ट्रवाद का जो दौर प्रारंभ हुआ, वह भारत के राष्ट्रीय फलक पर महात्मा गांधी के आगमन तक निर्विरोध जारी रहा. लेकिन फरवरी 1922 में चौरा-चौरी कांड के बाद जब गांधी जी ने असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया, तब भारत के युवा वर्ग में जो निराशा उत्पन्न हुई उसका निराकरण काकोरी कांड ने ही किया था सन् 1922 में जब देश में असहयोग आंदोलन अपने चरम पर था, उसी साल फरवरी में चौरा-चौरी कांड हुआ. गोरखपुर जिले के चौरा-चौरी में भड़के हुए कुछ आंदोलकारियों ने एक थाने को घेरकर आग लगा दी थी जिसमें 22-23 पुलिसकर्मी जलकर मर गए थे. इस हिंसक घटना से दुखी होकर महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया था, जिससे पूरे देश में जबरदस्त निराशा का माहौल छा गया था. आजादी के इतिहास में असहयोग आंदोलन के बाद काकोरी कांड को एक बहुत महत्वपूर्ण घटना के तौर पर देखा जा सकता है. क्योंकि इसके बाद आम जनता अंग्रेजी राज से मुक्ति के लिए क्रांतिकारियों की तरफ और भी ज्यादा उम्मीद से देखने लगी थी युवा नेता ने लिखा कि
नौ अगस्त 1925 को क्रांतिकारियों ने काकोरी में एक ट्रेन में डकैती डाली थी इसी घटना को काकोरी कांड के नाम से जाना जाता है. क्रांतिकारियों का मकसद ट्रेन से सरकारी खजाना लूटकर उन पैसों से हथियार खरीदना था ताकि अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध को मजबूती मिल सके. गोविन्द सिंह यादव मोनू ने लिखा कि काकोरी ट्रेन डकैती में खजाना लूटने वाले क्रांतिकारी देश के विख्यात क्रांतिकारी संगठन हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन (एचआरए) के सदस्य थे।जो
एचआरए की स्थापना 1923 में शचीन्द्रनाथ सान्याल ने की थी. इस क्रांतिकारी पार्टी के लोग अपने कामों को अंजाम देने के लिए धन इकट्ठा करने के उद्देश्य से डाके डालते थे. इन डकैतियों में धन कम मिलता था और निर्दोष व्यक्ति मारे जाते थे. इस कारण सरकार क्रांतिकारियों को चोर-डाकू कहकर बदनाम करती थी. धीरे-धीरे क्रांतिकारियों ने अपनी लूट की रणनीति बदली और सरकारी खजानों को लूटने की योजना बनाई. काकोरी ट्रेन की डकैती इसी दिशा में क्रांतिकारियों का पहला बड़ा प्रयास था. इसी क्रम में आगे लिखते हुए युवा नेता गोविन्द सिंह यादव मोनू ने लिखा कि अगर दुश्मन हमसे अधिक चालाक है तब हमें गुप्त रणनीति से काम करना चाहिए और दुश्मन को ऐसा सबक सिखाना चाहिए कि बह दोबारा हमारी तरफ आंख उठाकर देख भी न सके आगे गोविन्द ने कहा काकोरी काण्ड के शहीद चन्द्रशेखर आजाद,रोशन सिंह , रामप्रसाद बिस्मिल,और अशफाक उल्ला खां जैसे महान क्रांतिकारियों को रामपुर अखिल भारतीय यदुवंशी महासभा रामपुर उत्तर परिवार शत् शत् नमन और विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता है। आगे कहा कि हिन्दुस्तान की आजादी में योगदान देने वाले सभी शहीदों का योगदान सदैव हमें यह याद दिलाता रहेगा कि आपकी शहादत के बल पर आज हम स्वतंत्र है ,आजाद हैं। आगे गोविन्द ने शहीदों की शान में एक शेर पढ़ा।शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले
वतन पे मरने वालों का यही बाकी निशां होगा। जय हिन्द वन्देमातरम भारत माता की जय।
*भवदीय*
*गोविन्द सिंह यादव मोनू युवा जिलाध्यक्ष अखिल भारतीय यदुवंशी महासभा रामपुर उत्तर प्रदेश भारत*