*देश की सारी सम्पत्तियां बेच रही सरकार की नजर अब गरीब की रोटी पर भी पड़ गयी है- कृष्णकांत पाण्डेय*
*गरीब के शरीर से कपड़ा, पैर से चप्पल, तो पहले ही उतर चुकी थी, बची थी पेट की रोटी उस पर भी सरकार की टेढ़ी नजर – कृष्णकांत पाण्डेय*
*सरकार ने अपने फैसलों से साबित किया कि ‘‘हम दो हमारे दो’’ के लिए हम हैं- कृष्णकांत पाण्डेय*
*प्रकाशनार्थ:- लखनऊ, 18 जुलाई 2022*
भारतीय जनता पार्टी की डबल इंजन सरकार की नज़र अब गरीब की रोटी पर भी पड़ गयी है। देश की सारी सम्पत्तियां बेच रही सरकार की नजर से गरीब की रोटी भी नहीं बच पायेगी। किसानों, नौजवानों , छोटे व मंझले व्यापारियों, कमजोर वर्गों को तबाह करने के बाद अब दो जून की रोटी भी संकट के घेरे में है।
उक्त वक्तव्य देते हुए कांग्रेस प्रवक्ता श्री कृष्णकांत पाण्डेय ने आगे बताया कि जिस कार्य को पिछले 75 वर्षों में सरकारों ने नहीं किया, क्योंकि यह देश किसान प्रधान देश है। आज की मौजूदा सरकार जो ‘‘हम दो हमारे दो’’ के र्फामूले पर चल रही है उसने कर दिखाया। गरीब के शरीर से कपड़ा, पैर से चप्पल, तो पहले ही उतर चुका थी, बची थी तो पेट की रोटी उस पर भी आज से वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लगाकर स्वंय इस सरकार ने साबित कर दिया कि गरीबों, किसानों, मजदूरों, तुम्हें जीने का कोई हक नहीं है।
प्रवक्ता कृष्णकांत पाण्डेय ने आगे बताया कि आटा, चावल का आटा, गुड़, खांडसारी चीनी, चावल, राई, जौ, जई, शहद, पनीर, नारियल पानी, के साथ ही दही, लस्सी, छाछ, अब पूरी तरह से जीएसटी के दायरें में होंगे। पहली बार इन आवश्यक वस्तुओं जिसका उपयोग गरीब के घरों में जरूर होता है, उसे कर के दायरे में लाया गया है। अति तो तब हो गयी जब अस्पताल के कमरें भी जीएसटी के दायरें में आ गये तथा श्मसान घाट का काम करवाना भी महंगा हो गया।
श्री पाण्डेय ने आगे कहा कि जहां चावल प्रति कुंतल 400 से 700 रुपये महंगा होगा वहीं आटा 200 से 250 रुपये तक महंगा होने की आशंका है। इसी तरह मैदा, सूजी, दाल, पोहा, भी गरीब की रसोई से दूर रहेगा। केन्द्र सरकार ने ड्रायू लेगुिमनियस वेजीटेबलस शब्द के सहारे सूखी सब्जियां या उससे बने उत्पाद भी अब महंगे कर दिये। चिकित्सा क्षेत्र में आर्थोपेडिक उपकरण, शरीर के कृत्रिम अंग, सर्जिकल बेल्ट, के साथ ही बॉल पेन, स्याही, चम्मच, साइकिल पम्प, गहरे ट्यूबवेल टरबाइन पम्प, सबमर्सिबल पंप, आदि भी महंगे दर पर उपलब्ध होंगे।
श्री पाण्डेय ने आगे कहा कि एक तरफ सरकार उद्योगपतियों का 11 लाख करोड़ रूपये का कर्ज माफ कर मित्रता निभा रही है, वहीं गिरता हुआ रूपया, बढ़ता कर्ज, गिरता विदेशी मुद्रा भंडार, पेट्रोंल, डीजल, गैस हद से ज्यादा महंगा, आवश्यक वस्तुएं आम आदमी की पहंुच से बाहर होती जा रहीं हैं, इस पर सरकार का ध्यान जरा भी नहीं है। सरकार जनता में आपसी टकराव, धर्म और संस्कृति के नाम पर बंटवारे की नाकाम कोशिश में लगी हुई है।
रिपोर्ट – राजेश कुशवाहा
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