नोट -यह विचार संक्षेप में रखे गए हैं।
काशी यंत्र ( यही इस शहर को जीवित शरीर कहने की संज्ञा ही नहीं देता बल्कि सिद्ध करता हैं।) इस शहर का वास्तुशास्त्र है ।
संभव है कई लोग इसे बेबुनियाद, बेतुका और अलंकारीक भाषा व कवि की महज कल्पना मात्र मान कर आगे बढ़ सकते हैं।
भारतीय दार्शनिक व गैर दार्शनिक विचारधार , ज्यामितीय-विज्ञान , अधिकतम आस्तिक नास्तिक इत्यादि विचारधाराओं का उद्गम, उत्थान का एक मात्र यहीं स्थान होना महज़ एक मात्र संयोग नहीं हैं। यह शहर की वास्तु का प्रभाव हैं।
काशी में एक तीर्थ यात्रा होती हैं। जिसे पंचक्रोशी यात्रा के नाम से जाना जाता हैं। इसका बाह्य स्वरूप कर्मकाण्ड के रूप में हैं और आन्तरिक स्वरूप ज्ञानकाण्ड के रूप में हैं।
कर्मकाण्ड स्वरूप काशी क्षेत्र की प्रदक्षिणा की जाती हैं। इसमें भी आध्यात्मिक चेतना है, लेकिन यह चेतना निम्न स्तरीय इसे हम प्राथमिक भी कह सकते हैं। मेरे विचार में इसे चेतना के द्वार की संज्ञा देता कोई अतिशयोक्ति नहीं। यह यात्रा हमें मूल केंद्र तक ले जाने का मार्ग प्रशस्त करती हैं। यह परम्परा महज़ लोक व्यवहार तक सीमित नहीं इससे आगे भी हैं।
ज्ञानकाण्ड जो इस काशी रुपी यंत्र को जिसे आप वास्तु की कला के रूप देख रहे थे अब आप इसे एक व्यक्तित्व के रूप में देखेगे। सीमित से असीमित, सगुण से निर्गुण , ईश्वर से ब्रह्म के रूप में।
तैत्तरीयोपनिषद् में वरूण और भृगु ऋषि का संवाद -वरूण भृगु ऋषि से एक प्रश्न करते है जिसके उत्तर में भृगु ऋषि ब्रह्म (ईश्वर) के संदर्भ में पांच विचार देते हैं। अन्नमय कोश, प्राणमय कोश, मनोमय कोश, विज्ञानमय कोश और आनंदमय कोश उपरोक्त चित्र पर ध्यान केन्द्रित करे।
इस आधार पर इतना तो कहा ही जा सकता हैं। काशी के वास्तुकला का नक्शा उपनिषद् में वर्णित ब्रह्म के पांच कोश में अंतर्निहित हैं।
इसी लिए जब कोई व्यक्ति इस (काशी) शहर में ठहरता है तो उसे इस शहर की अनुभूति होती न की इस टीम-टीमाटी बिजली के बतीयों की ।
बुद्ध से लेकर विश्वनाथ के धाम तक
पंकक्रोश की काशी जिसकी सीमा वाराणसी है ,का विस्तार ब्रह्म के पाचँ कोश में ही अंतर्निहित हैं। आप विचार कर देखे जो भी आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक धार्मिक आदि इसी परिधि में विकसित हुए ।
अपने आप में यह शहर अद्भुत, अद्वितीय आविष्कार हैं।
इसकी प्रमाणिकता का बल किसी भाषाविद की कलम ,किस्सो – कहानियो में नहीं आपके अनुभव में हैं।
अंकित शर्मा
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय
भारतीय दर्शन और धर्म विभाग
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रिपोर्टर सिद्धार्थ श्रीवास्तव
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