अभ्यास के दौरान ही पटियाला में 66.90 मीटर थ्रो किया था। यह मेरा सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था। मुझे उम्मीद थी कि मैं टोक्यो में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन दोहरा पाऊंगा। इसके लिए कड़ी मेहनत और अभ्यास किया था। टोक्यो में पहले प्रयास में 66.95 मीटर, दूसरे में 68.08, तीसरे में 65, चौथे में66.71, पांचवी में 68.55 मीटर थ्रो किया था। पांचवें प्रयास में ही पता चल गया था कि इससे पदक मिल जाएगा। छठे प्रयास मित्रों कम रहा, तो इसे मैंने फाउल कर दिया। अब अगला लक्ष्य ऐसा विश्व रिकॉर्ड बनाना है, जिसे मैं खुद भी नहीं तोड़ पाए। सबसे पहले अगले साल चीन में होने वाली एशियन चैंपियनशिप और लंदन में होने वाली विश्व चैंपियनशिप में देश के लिए स्वर्ण जीतकर टोक्यो पैरालिंपिक की तरह देशवासियों को गौरवान्वित कराना है। इसके बाद 70 मीटर से अधिक और फिर 75 मीटर से अधिक थ्रो करने पर जोर रहेगा। 70 मीटर भी सम्मानित रोग होता है लेकिन अब मेरा लक्ष्य 75 मीटर से ज्यादा का है। तथा सुमित यह भी बताते हैं कि उनकी अभ्यास के लिए उन्हें क्या-क्या सुविधाएं मिली-(सोनीपत में दो जगह सिंथेटिक ट्रैक उपलब्ध थे। साईं सेंटर बहालगढ़ और राठधना गांव के स्टेडियम में सिंथेटिक ट्रैक मौजूद है, इसलिए मुख्यमंत्री मनोहर लाल से गांव खेड़ा में स्टेडियम संबंधित कोई मांग नहीं रखी गई क्योंकि सिंथेटिक ट्रैक और अन्य सुविधाएं को देखरेख की अधिक जरूरत होती है। गांव में इसका रखरखाव संभव नहीं हो पाता, गांव में अच्छा स्टेडियम तथा जगह होने के नाते अभ्यास करने के लिए मुझे बहुत सुविधाएं मिली)
सुमित कहते हैं कि उन्हें विदेश जाकर अभ्यास नहीं करना जब अपने ही देश में विश्व स्तरीय अभ्यास की सुविधा मौजूद है तो विदेश में जाकर क्या करना। विदेशों में लगने वाले कैंप में भारतीय खिलाड़ियों को खाना और अन्य परेशानियों का सामना करना पड़ता है। मैं अपने कोच वीरेंद्र धनखड़ और नवल सिंह के साथ ही ट्रेनिंग को जारी रखूंगा। हरियाणा और केंद्र सरकार ने पैरों खिलाड़ियों की भरपूर मदद की है। सुमित यह भी बताते हैं कि पैरालिंपिक स्वर्ण पदक जीतना हर खिलाड़ी का सपना होता है और उसके पीछे किसी एक व्यक्ति नहीं, कई लोगों की मेहनत होती। मैं अपनी मां को यह स्वर्ण पदक समर्पित करना चाहता हूं। यह पदक के ऐसे कई पदक मां के चरणों में कुर्बान कर दे तो उनकी मेहनत का मोल नहीं चुकाया जा सकता।
Contact This News Publisher